अतिबला (Atibala) के आयुर्वेदिक प्रयोग
अतिबला (Atibala) के आयुर्वेदिक प्रयोग
संस्कृत नाम: अतिबला (Atibala)
वैज्ञानिक नाम: Abutilon indicum
परिवार: Malvaceae (मालवेसी)
अन्य नाम:
- हिंदी: कंगही, झिनक, मुधरी
- संस्कृत: अतिबला, कर्णिका, पितपर्णी
- अंग्रेजी: Indian Mallow
- तमिल: திருச்சி (Thuthi)
- तेलुगु: దువ్వారి
1. आयुर्वेद में अतिबला का परिचय
अतिबला एक महत्वपूर्ण आयुर्वेदिक औषधि है, जिसे बलवर्धक (शक्ति बढ़ाने वाला), वातहर (वात दोष नाशक), और रसायन (जीवनशक्ति बढ़ाने वाला) माना जाता है। इसके पत्ते, जड़, बीज और फूल सभी औषधीय उपयोग में आते हैं।
गुण और कर्म (Pharmacological Properties)
- रस (स्वाद): मधुर, तिक्त (कड़वा)
- गुण (गुणधर्म): लघु, स्निग्ध
- वीर्य (ऊष्णता-शीतलता): शीतल
- विपाक (पाचन के बाद प्रभाव): मधुर
- दोष प्रभाव: वात-पित्त नाशक, कफ शमन करने वाला
2. आयुर्वेद में उपयोग और लाभ
(1) शरीर में बल और ऊर्जा बढ़ाने में
👉 प्रयोग:
- 3-5 ग्राम अतिबला चूर्ण को दूध या शहद के साथ लेने से शरीर की कमजोरी दूर होती है।
- इसे अश्वगंधा के साथ मिलाकर लेने से शरीर में ताकत आती है।
- अतिबला के बीजों को पीसकर दूध में उबालकर पीने से मांसपेशियां मजबूत होती हैं।
(2) वात दोष और संधि रोग (जोड़ों के दर्द) में
👉 प्रयोग:
- अतिबला के पत्तों का काढ़ा (Decoction) बनाकर पीने से गठिया (Arthritis), जोड़ दर्द, साइटिका और वात रोग में लाभ होता है।
- अतिबला तेल (तिल तेल में पकाया हुआ अतिबला) जोड़ों पर लगाने से दर्द में राहत मिलती है।
(3) पुरुषों की कमजोरी और वीर्य दोष में
👉 प्रयोग:
- अतिबला बीज चूर्ण (3-5 ग्राम) को गाय के दूध के साथ लेने से वीर्य वृद्धि, शुक्राणु बढ़ाने, और यौन शक्ति में लाभ होता है।
- शुक्राणु (Sperm) की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए इसे गोखरू और शतावरी के साथ लिया जाता है।
(4) महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए
👉 प्रयोग:
- अनियमित मासिक धर्म में अतिबला की जड़ का काढ़ा पीने से लाभ होता है।
- प्रसव के बाद कमजोरी दूर करने के लिए अतिबला और अश्वगंधा का मिश्रण दूध के साथ लेना लाभकारी होता है।
(5) शारीरिक सूजन और जलन में
👉 प्रयोग:
- अतिबला पत्तों का रस निकालकर सूजन वाली जगह पर लगाने से सूजन कम होती है।
- इसका काढ़ा पीने से आंतरिक जलन में राहत मिलती है।
(6) पाचन तंत्र के लिए
👉 प्रयोग:
- अतिबला के पत्तों का काढ़ा पीने से अम्लपित्त (Acidity), कब्ज और पाचन विकार दूर होते हैं।
- यह आंतों को मजबूत करता है और पेट की सूजन कम करता है।
(7) मूत्र रोग और गुर्दे की समस्या में
👉 प्रयोग:
- अतिबला की जड़ का काढ़ा मूत्रवर्धक (Diuretic) होता है, जिससे मूत्र मार्ग की जलन, पेशाब में रुकावट और गुर्दे की सूजन में लाभ मिलता है।
- यह पेशाब में संक्रमण (UTI) को दूर करता है।
(8) बुखार और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में
👉 प्रयोग:
- अतिबला की पत्तियों का रस या काढ़ा पीने से बुखार में राहत मिलती है।
- यह रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है और शरीर को संक्रमण से बचाता है।
3. अतिबला सेवन की विधि और मात्रा
उपयोग | मात्रा | कैसे लें |
---|---|---|
चूर्ण (Powder) | 3-5 ग्राम | दूध या शहद के साथ |
काढ़ा (Decoction) | 10-20 मिलीलीटर | सुबह-शाम |
बीज चूर्ण | 3-5 ग्राम | दूध के साथ |
ताजे पत्तों का रस | 10-15 मिलीलीटर | पानी में मिलाकर |
अतिबला तेल (Massage Oil) | आवश्यकतानुसार | प्रभावित अंगों पर लगाएं |
4. अतिबला के उपयोग में सावधानियां
✅ शुद्ध रूप में ही प्रयोग करें।
✅ गर्भवती महिलाएं डॉक्टर की सलाह से ही लें।
✅ अधिक मात्रा में सेवन से पेट दर्द या अपच हो सकता है।
✅ मधुमेह रोगी डॉक्टर की सलाह के बिना इसका अधिक सेवन न करें, क्योंकि यह ब्लड शुगर कम कर सकता है।
5. निष्कर्ष
अतिबला एक शक्तिशाली आयुर्वेदिक औषधि है, जो शरीर को शक्ति, ऊर्जा और पोषण प्रदान करती है। यह वात-पित्त संतुलित करने, मांसपेशियों की ताकत बढ़ाने, मूत्र रोगों में आराम देने, तथा पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए उपयोगी है। यदि उचित मात्रा में प्रयोग किया जाए, तो यह कई बीमारियों में लाभकारी सिद्ध हो सकती है।
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